सनातन धर्म कितना पुराना है (sanatan dharm kitna purana hai)

इस आर्टिकल में हम सनातन धर्म पर विस्तार से चर्चा करेंगे और जानेंगे की sanatan dharm kitna purana hai और sanatan dharm ki sthapna kab hui थी। क्या धरती पर duniya ka sabse purana dharm भी सनातन धर्म ही है ? अगर नहीं तो फिर sabse purana dharm kaun sa hai ?

sanatan dharm kitna purana hai

इस आर्टिकल में आपको sanatan dharma kitna purana hai के बारे में पूरी जानकारी मिलने वाली है | अगर आप जानना चाहते हैं की सनातन धर्म की शुरुआत कैसे हुई थी (sanatan dharm ki sthapna kab hui), सनातन धर्म के संस्थापक कौन है और सनातन धर्म में कितने पुराण है तो पोस्ट को लास्ट तक जरुर पढ़िए

सनातन धर्म का मतलब (Meaning of Sanatan dharma)

सनातन धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म(duniya ka sabse purana dharm) माना जाता है। सनातन शब्द भारत के प्राचीन भाषा संस्कृत से लिया गया है। सनातन शब्द का अर्थ होता है ‘शाश्वत’ और इसका मतलब होता है जो हमेशा से है और हमेशा रहेगा। इसके अलावा ‘धर्म’ शब्द का अर्थ ‘धरन’ होता है जिसका मतलब कि, जो संभव होता है उसे अपने ऊपर लेना या अपने अनुसार व्यवहार करना।

इसी प्रकार, सनातन धर्म का मतलब होता है कि एक ऐसा धर्म जो हमेशा से है और हमेशा रहेगा अर्थात ऐसा धर्म जो लोगों को सही दिशा में ले जाकर जीवन में सफलता और आनंद की प्राप्ति करवाएं।

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इसके अलावा सनातन धर्म का मतलब इससे भी निकटतम रूप से जुड़ा हुआ है कि यह एक ऐसी शास्त्रीय रिवाज है जिसमें शास्त्रों, धर्म ग्रंथों और वेदों के माध्यम से जीवन में धार्मिकता, शुद्धता, आध्यात्मिकता, सदगुण और सफलता का मार्ग बताया है।

सनातन धर्म के बारे में (About Sanatan Dharma)

भारतीय सनातन धर्म duniya ka sabse purana dharm है। इस धर्म को हिंदू धर्म, वैदिक धर्म, संस्कृत धर्म के रूप में भी जाना जाता है। इस धर्म का मुख्य उद्देश्य मनुष्य जीवन के समस्त पहलुओं से जुड़ा हुआ है। इस धर्म में आत्मा, पाप-पुण्य, धर्म, कर्म और मोक्ष जैसे पहलुओं पर विचार किया जाता है।

सनातन धर्म के लोग मानते हैं कि सभी जीवो की एक ही आत्मा होती है। इस धर्म में आत्मा रूपी जीवन को जीना और जीवित रहना ही, जीवन का मुख्य आधार है। इस धर्म में वेदों, उपनिषदों, पुराणों, और गीता जैसी पवित्र पुस्तकों का महत्वपूर्ण स्थान होता है।

सनातन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि इन सभी ग्रंथों और शास्त्रों के माध्यम से जीवन के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को समझा जा सकता है। इस धर्म में मूर्ति पूजा, मंत्रों का जाप, ध्यान, योग और व्रत जैसी बातों का महत्व होता है।

सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों में कई मुख्य परंपराएं, धरोहर और आध्यात्मिक शास्त्र है। जिनमें से कुछ इस प्रकार है –

  1. वेद – वेद सनातन धर्म के मुख्य श्रुति ग्रंथ है। इन वेदों में धार्मिक ज्ञान, उपास्य देवताओं की महिमा और विधियाँ बताई गई है।
  2. स्मृति – स्मृतियों में धार्मिक नीतियों, कानूनों, धर्म शास्त्र और सामाजिक आचार विचारों के बारे में बताया जाता है। इन स्मृतियों में मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, रामायण और महाभारत जैसे महान ग्रंथ शामिल है।
  3. दर्शनशास्त्र – सनातन धर्म में कुछ मुख्य दर्शनशास्त्र है जिनमें से वेदांत, योग, सांख्य, न्याय, मीमांसा, वैशेषिक और चार्वाक जैसे दर्शनशास्त्र शामिल है। यह सभी दर्शनशास्त्र धार्मिक दर्शन ज्ञान को बढ़ाने में मदद करते हैं।
  4. पुराण – पुराणों में धार्मिक कथाएं, इतिहास और देवी-देवताओं के दवारा की गई लीलाएं बताई जाती है।
  5. धार्मिक अनुष्ठान – सनातन धर्म में पूजा-अर्चना, ध्यान, तपस्या, सेवा, यज्ञ और प्यार में त्यौहार जैसे अनेक धार्मिक अनुष्ठान होते हैं जो इस धर्म के अनुयायियों के आध्यात्मिक उन्नति को बढ़ाने में मदद करते हैं।

भारतीय सनातन धर्म हमारी संस्कृति से काफी जुड़ा हुआ है और यह धर्म श्री विधाता, सम्मान, सामंजस्य और समाधान के सिद्धांतों पर आधारित है। इस धर्म में सभी प्राणियों का सम्मान, धर्म-निरपेक्षता, एकता और आत्मनिर्भरता के मूल्यों को बढ़ावा दिया गया है।

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यहाँ तक हमने जाना कि सनातन धर्म का मतलब क्या होता हैं अब आगे हम Sanatan Dharm Kitna purana hai के बारे में जानेंगे और इस बात पर भी चर्चा करेंगे की duniya ka sabse purana dharm कौन सा है |

सनातन धर्म कितना पुराना है (sanatan dharm kitna purana hai)

क्या आपने कभी सोचा है की duniya ka sabse purana dharm कौन सा है | आखिर Sanatan dharm kitna purana hai और इस Sanatan dharm ki sthapna kab hui

वैसे तो सनातन धर्म की उत्पत्ति के विषय में निश्चित रूप से कुछ कहना संभव नहीं है क्योंकि इसका विकास बहुत प्राचीन काल से हो रहा है।

लेकिन आपको बता दें कि प्राचीन ग्रंथों और पुराणों के अनुसार Duniya ka sabse purana dharm सनातन धर्म माना जाता है |

इस धर्म की शुरुआत लगभग 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 56 हजार 123 साल पहले हुई थी। और यह शुरुआत जब इस पृथ्वी पर सूर्य की पहली किरण गिरी थी तब से मानी जाती है |

sanatan dharm kitna purana hai – सनातन धर्म लगभग 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 56 हजार 123 साल पुराना है

सनातन धर्म की उत्पत्ति भारतीय उपमहाद्वीप के भूभाग में हुई है, जिसे इस क्षेत्र की समृद्ध और विविध संस्कृति ने बनाया है। इस धर्म को वेदों और उनके पूर्व ग्रंथों के आधार पर भी जाना जा सकता है।

सनातन धर्म में वेदों को मुख्य श्रुति ग्रंथ माना गया है और इनको सबसे पुराने धार्मिक ग्रंथों में से एक माना जाता है। वेद विभिन्न संहिताओं, ब्राह्मणों, आरण्यको और उपनिषदों में बनते हुए होते हैं। यह ग्रंथ धार्मिक ज्ञान, उपास्य देवताओं की महिमा, धर्म की आचार-विचारों का विवरण, ध्यान, धार्मिक उपासना, धर्मशास्त्र और नैतिकता के विषय में बहुत कुछ बताते हैं।

इसके अलावा सनातन धर्म में स्मृति, पुराण, दर्शन शास्त्र और अन्य धार्मिक ग्रंथ भी है, जिनमें धार्मिक नीतियों, उपास्य देवताओं की कथाएं और धार्मिक आचार विचारों का वर्णन किया जाता है।

सनातन धर्म की शुरुआत समय के साथ हुई है और यह भारतीय संस्कृति का एक मूल्यवान हिस्सा भी बन गया है। इसमें आध्यात्मिकता, सद्भावना, संस्कृति, धरोहर और विविधता का सिद्धांत है, जिसका पालन और समर्थन किया जाता है।

यहाँ तक हमने जाना की duniya ka sabse purana dharm यानि sanatan dharm kitna purana hai और sanatan dharm ki sthapna kab hui थी। आगे की जानकारी में हम जानेंगे की सनातन धर्म के संस्थापक कौन है ?

सनातन धर्म के संस्थापक (Founder of Sanatan Dharma)

दुनिया भर में लोग जानना चाहते हैं कि आखिर सनातन धर्म के संस्थापक कौन है? परंतु यह बात सत्य है कि सनातन धर्म का संस्थापक कोई मनुष्य नहीं है। यह धर्म भारत देश की एक ऐसी पुरानी परंपरा है जो कई हजारों-लाखों सालों से चली आ रही है।

सनातन धर्म का जीवन और संस्कृति के संबंध में ज्ञान और अनुभव बहुत पुराने समय से इसके समर्थकों द्वारा जुड़ा रहा है। इस धर्म को धर्म शास्त्रों, उपनिषदों, पुराणों और वेदों के माध्यम से भी जाना जाता है। इनमें से अधिकांश उपनिषदों और धर्म शास्त्रों का श्रेय ऋषि-मुनियों एवं आध्यात्मिक गुरुओं को जाता है।

इसी वजह से सनातन धर्म के संस्थापक कोई व्यक्ति विशेष नहीं है। इस धर्म को भारतीय संस्कृति और सभ्यता का एक प्रमुख अंग माना जाता है।

Note : सनातन धर्म से जुड़ी अन्य जानकारी के लिए विकिपीडिया की ऑफिशियल वेबसाइट पर विजिट करें।

सनातन धर्म के नियम

भारतीय सनातन धर्म एक बहुत प्राचीन धर्म है जिसका मतलब होता है ‘सदाचारी धर्म’ या ‘अविनाशी धर्म’। यह धर्म हिंदू धर्म में आता है। इसके नियम और सिद्धांत वेद, स्मृति, उपनिषद, धर्म शास्त्रों और अन्य पुराणों में लिखित है। सनातन धर्म के कुछ प्रमुख नियम इस प्रकार है-

  1. धर्म का पालन – सनातन धर्म में धर्म के पालन का बहुत ही महत्व है। इस धर्म के अनुसार जीवन जीने की शिक्षा दी जाती है और इसे समृद्धि, संतोष और शांति के साथ जीवन जीना सिखाया जाता है।
  2. कर्म – सनातन धर्म में कर्म प्रमुख स्थान है। इसके अनुसार, मनुष्य को अपने जीवन में अच्छे कर्म करने चाहिए जो उसके जीवन के सुख और दुख को निर्धारित करते हैं। कर्म फल की चिंता किए बिना ही कर्म करने की सलाह दी जाती है।
  3. ध्यान और योग – सनातन धर्म में ध्यान और योग को मन की शुद्धि के लिए और आध्यात्मिक विकास के लिए उपयोग किया जाता है। योग और ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित रख सकता है और आत्मा को परमात्मा से जोड़े रखने का प्रयास भी करता है।
  4. आचार्य-शिष्य परंपरा – सनातन धर्म में आचार्य शिक्षा परंपरा पर बहुत बल दिया जाता है। आचार्य बहुत विद्वान होते हैं जो अपने शिष्य को धार्मिक शिक्षा और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
  5. संस्कार – सनातन धर्म में संस्कार के रीति रिवाज का बहुत महत्व बताया गया है। यह संस्कार जीवन के विभिन्न अवसरों पर किए जाने वाले धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठान होते हैं जो मनुष्य के जीवन को पवित्र बनाने में सहायता करते हैं।
  6. अहिंसा – सनातन धर्म में अहिंसा और उदारता की प्रशंसा की जाती है। अहिंसा के अनुसार हमें सभी जियो का सम्मान करना चाहिए और उन्हें किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुँचानी चाहिए।
  7. त्रिमूर्ति – सनातन धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और शिव को त्रिमूर्ति का प्रतीक माना जाता है, जो सृष्टि, लालन-पालन और संहार के देवता है।

ये कुछ सनातन धर्म के प्रमुख नियम है। लेकिन ये धार्मिक नियम भिन्न-भिन्न संप्रदायों और अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न हो सकते हैं। इन नियमों को विभिन्न तरीकों से साधु-संतों और आचार्य के द्वारा बताया जाता है। ये नियम सनातन धर्म के सामाजिक, आध्यात्मिक और नैतिक जीवन को सुव्यवस्थित करने में मदद करते हैं।

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अब तक हमने जाना की sabse purana dharm kaun sa hai और sanatan dharm kitna purana hai तथा sanatan dharm ki sthapna kab hui थी। अब आगे हम जानेंगे की Duniya ka sabse purana dharm सनातन धर्म में पुराणों की संख्या कितनी है?

सनातन धर्म में पुराणों की संख्या

अगर अभी तक आपको यह नहीं पता कि सनातन धर्म के अनुसार पुराणों की संख्या कितनी है? तो आपको बता दें कि हिंदू धर्म में मुख्य रूप से वेदों की संख्या 4 हैं परंतु, सनातन धर्म के अनुसार पुराणों की कुल संख्या 18 है।

हिंदू पुराणों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बारे में वर्णन मिलता है जिन्हें त्रिमूर्ति या त्रिदेव कहा गया है। सनातन धर्म के अनुसार 18 पुराणों में से ब्रह्मा, विष्णु और महेश को 6-6 पुराण समर्पित है।

पुराणों में सबसे प्राचीन पुराण, विष्णु पुराण है। पुराणों के बारे में महर्षि वेदव्यास जी ने संस्कृत में बताया है जिन्हें देव वाणी भी कहा जाता है।

18 पुराणों के नाम इस प्रकार है-

  1. विष्णु पुराण
  2. शिव पुराण
  3. ब्रह्मा पुराण
  4. वायु पुराण
  5. मत्स्य पुराण
  6. गरुड़ पुराण
  7. भगवत पुराण
  8. पदम पुराण
  9. वराह पुराण
  10. ब्रह्मांड पुराण
  11. ब्रह्म वैवर्त पुराण
  12. लिंग पुराण
  13. वामन पुराण
  14. कूर्म पुराण
  15. मार्कंडेय पुराण
  16. अग्नि पुराण
  17. ब्रह्म पुराण
  18. वायु पुराण

अन्य ग्रंथों में और भी अनेक छोटे-छोटे पुराण मिलते हैं, जो अलग-अलग भागों में विभाजित है जिन्हें मिनोर पुराण या उप पुराण के नाम से जाना जाता है। यह जान लेना बहुत महत्वपूर्ण है कि यह पुराण विभिन्न काल में लिखे गए थे और इनमें ऐतिहासिक, धार्मिक, फिलोसॉफिक और कथात्मक साहित्य का सम्मिश्रण होता है।

प्रत्येक पुराण में विष्णु, ब्रह्मा, शिव, गणेश, सूर्य, देवी-देवताओं और वैष्णव, शैव, शाक्त आदि विभिन्न पथों की पौराणिक कथाएं दर्शाई गई है।

sanatan dharm kitna purana hai के बारे में बताते हुए हमने निचे सनातन धर्म के प्रमुख देवी देवताओं के बारे में भी लिखा है |

सनातन धर्म के प्रमुख देवी देवता

भारतीय सनातन धर्म या हिंदू धर्म (Duniya ka sabse purana dharm) में कई देवी-देवता पूजे जाते हैं जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण देवी देवता इस प्रकार हैं।

  1. ब्रह्मा – ब्रह्माजी त्रिमूर्ति देव में से प्रथम है। इनको सृष्टि के प्रमुख देवता के रूप में पूजा जाता है।
  2. विष्णु – विष्णु जी त्रिमूर्ति देव में से द्वितीय हैं। इनको पूरे संसार के पालनहार और संरक्षक के रूप में पूजा जाता है।
  3. शिव – शिव भगवान त्रिमूर्ति देव में से तीसरे देवता है। इनको पूरे जगत में प्रकृति के उत्थान, संरक्षण और संहार के लिए जाना जाता है।
  4. दुर्गा/पार्वती – इन देवियों को शक्ति की प्रतिष्ठा और नारी के रूप में पूजा जाता है।
  5. लक्ष्मी – लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पत्नी है। इनको समृद्धि, धन और सौभाग्य की देवी के रूप में जाना जाता है।
  6. सरस्वती – मां सरस्वती भगवान ब्रह्मा जी की पत्नी है और इन्हें विद्या, कला और ज्ञान की देवी के रूप में पूजा जाता है।
  7. हनुमान – हनुमान जी माता अंजनी और केसरी के पुत्र है। यह भगवान श्री राम के भक्त और शक्तिशाली देवता है।
  8. गणेश – भगवान श्री गणेश, शिव और पार्वती के प्रिय पुत्र हैं। इनको विधि, शुभ कार्य, और सफलता के देवता के रूप में जाना जाता है।
  9. सूर्य – भगवान सूर्य देव को जीवन के प्रकाश, ऊर्जा और शक्ति के स्रोत के रूप में पूजा जाता है।
  10. शक्ति – इनको प्राकृतिक शक्ति और शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।

इनके अलावा हिंदू धर्म या सनातन धर्म में और भी अधिक देवी देवता हैं जिनका अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग महत्व है और उनकी अलग अलग तरीके से पूजा की जाती है।

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अभी तक आपने जाना कि sanatan dharm kitna purana hai और Duniya ka sabse purana dharm, sanatan dharm ki sthapna kab hui थी। आगे के आर्टिकल में हम सनातन धर्म से जुड़े हुए कुछ प्रमुख लोक, सनातन और हिंदू धर्म में अंतर के बारे में चर्चा करेंगे।

सनातन धर्म श्लोक (shloka Of Sanatan dharma)

सनातन धर्म में वैसे तो बहुत सारे श्लोक हैं लेकिन कुछ महत्वपूर्ण श्लोक ऐसे हैं जिनका उपयोग duniya ka sabse purana dharm हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा किया जाता है जो इस प्रकार हैं

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं

भर्गो देवस्य धीमहि

धियो यो नः प्रचोदयात्

इस श्लोक को संस्कृत भाषा में ‘गायत्री मंत्र’ के रूप में जाना जाता है। यह सनातन धर्म में बहुत प्रसिद्ध मंत्र है। इस मंत्र का अर्थ इस प्रकार है-

“ॐ भूर्भुवः स्वः” – यह तीनों लोकों (भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्गलोक) को संकेत करता है और प्रार्थना करने वाले को उन लोगों के समृद्धि और शुभ कार्यों में सफलता की कामना करता है।

“तत्सवितुर्वरेण्यं” – यहां “तत्सवितुः” शब्द एक दिव्य देवता सविता (सूर्य देवता) का संकेत करता है, और “वरेण्यं” शब्द श्रेष्ठ या अच्छा का अर्थ है। इसलिए, “तत्सवितुर्वरेण्यं” का अर्थ है “हम उस दिव्य सूर्य देवता को प्रार्थना करते हैं, जो सर्वश्रेष्ठ है और हमारे लिए आश्रयदाता है।

“भर्गो देवस्य धीमहि” – “भर्गः” शब्द तेज, प्रकाश, और ज्ञान का प्रतीक है, जो दिव्यता का प्रतीक है। “धीमहि” शब्द प्रत्येक मन्दिर के पूर्वांग में जो प्रविष्टि द्वार पर स्थित होता है, उसे नमन करने का भाव दर्शाता है।

इसलिए, “भर्गो देवस्य धीमहि” का अर्थ होता है “हम उस दिव्यता का नमन करते हैं, जो प्रकाश, ज्ञान और दिव्यता का प्रतीक है।

“धियो यो नः प्रचोदयात्” – “धियो” शब्द बुद्धि और विचारों को संकेत करता है और “यो नः प्रचोदयात्” शब्द का अर्थ होता है “जो हमारे बुद्धि और विचारों को प्रेरित करे”। इसलिए, “धियो यो नः प्रचोदयात्” का अर्थ होता है “हमारे बुद्धि और विचारों को प्रेरित करें।

इस प्रार्थना मंत्र का उच्चारण, ध्यान और धार्मिक उत्थान के लिए किया जाता है। यह सूर्य देवता की स्तुति एवं उसके शक्ति और ज्ञान का आभास कराता है।

“असतो मा सद्गमय

तमसो मा ज्योतिर्गमया

मृत्योर्मामृतं गमय”

यह श्लोक बृहदारण्यक उपनिषद से लिया गया है। यह सनातन धर्म के प्रमुख उपनिषद वाणी में से एक है। इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार है –

“असतो मा सद्गमय” – असत् शब्द अविकारी, अमिथ्या, अनैतिकता और अनात्मिकता का प्रतिक है, जबकि सत् शब्द सत्य, धर्म, नैतिकता और आत्मिकता को प्रतिस्पर्धी रूप से दर्शाता है।

“सद्गमय” शब्द का अर्थ होता है “मुझे सत्य की ओर ले जाओ”। इसलिए, “असतो मा सद्गमय” का अर्थ होता है “मुझे अविकारीता से सत्य की ओर ले जाओ”।

तमसो मा ज्योतिर्गमया” – तमस् शब्द अज्ञान, अंधकार, अधर्म और अविवेक का प्रतीक है, जबकि ज्योतिः शब्द प्रज्ञान, प्रकाश, धर्म और विवेक को प्रतिस्पर्धी रूप से दर्शाता है। “ज्योतिर्गमया” शब्द का अर्थ होता है “मुझे अज्ञान से प्रज्ञान की ओर ले जाओ”।

इसलिए, “तमसो मा ज्योतिर्गमया” का अर्थ होता है “मुझे अविवेक से प्रज्ञान की ओर ले जाओ”।

“मृत्योर्मामृतं गमय” – “मृत्यु” शब्द मृत्यु, अविनाशीता, अस्थायित्व और अधोगति का प्रतीक है, जबकि “अमृतं” शब्द अमरता, नाशरहितता, स्थायित्व और उच्चता को प्रतिस्पर्धी रूप से दर्शाता है। “मृत्योर्मामृतं गमय” का अर्थ होता है “मुझे मृत्यु से अमृतत्व की ओर ले जाओ”।

इस श्लोक का उच्चारण ध्यान और आध्यात्मिक विकास के लिए किया जाता है। यह मनुष्य को जीवन के विभिन्न पहलुओं में सत्य, प्रज्ञान और अमृतत्व की ओर प्रेरित करता है, ताकि वह आध्यात्मिक उन्नति और संतुष्टि का अनुभव कर सके।

सनातन धर्म और हिन्दू धर्म में अंतर

duniya ka sabse purana dharm सनातन धर्म और हिंदू धर्म के बीच थोड़ा बहुत अंतर है, परंतु इनके बीच कुछ समानताएं भी है। यहां पर इन दोनों धर्मों में मुख्य अंतर और समानताओं के बारे में बताया गया है।

  • श्रुति और स्मृति- सनातन धर्म में श्रुति (वेद) और स्मृति (संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, सूत्र) दोनों का महत्व है। हिंदू धर्म में भी वेदों का महत्व है, परंतु स्मृतियों के साथ उसकी अपेक्षा कम महत्व है।
  • ईश्वर – सनातन धर्म में ब्रह्म या प्रब्रह्म को अद्वितीय ईश्वर के रूप में माना जाता है। हिंदू धर्म में भी ईश्वर के विभिन्न रूपों को माना जाता है जो विभिन्न शक्तियों और गुणों के प्रतीक होते हैं।
  • उपास्य देवता – सनातन धर्म में भगवान विष्णु, शिव, देवी, सूर्य, गणेश, कार्तिकेय, ब्रह्मा, इंद्र, अग्नि, वायु आदि प्रमुख देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है। हिंदू धर्म में भी यह देवी देवता उपास्य माने जाते हैं।
  • संस्कृति और रिवाज – सनातन धर्म की संस्कृति और रिवाज विश्वस्तरीय रूप से विभिन्न समुदाय द्वारा अपनाई जाती है। हिंदू धर्म की संस्कृति भी विभिन्न समुदायों में बंटी हुई होती है और उनके अपने-अपने स्थानीय रिवाज होते हैं।

सनातन धर्म और हिंदू धर्म में समानताएं

सनातन धर्म और हिंदू धर्म में कुछ महत्वपूर्ण समानताएं हैं जो इस प्रकार है –

  • धर्म सूत्र और धर्म शास्त्र – दोनों धर्मों में धर्मसूत्र (उपनिषदों के बाद के शास्त्रों का संक्षेप रूप) और धर्मशास्त्र (समृति ग्रंथों के शास्त्रों का संक्षेप रूप) का महत्व है।
  • धार्मिक अभिवादन – सनातन धर्म और हिंदू धर्म दोनों में सत्कार का भाव होता है और धार्मिक अभिवादन का महत्व भी होता है।
  • संतान धर्म – इन दोनों धर्मों में परिवार, संतान और समाज के लिए धर्म का काफी महत्व है, जिसमें नैतिकता, संस्कार और धार्मिक शिक्षा का प्रधान अंश होता है।
  • धार्मिक आयोजन – इन दोनों धर्मों में विभिन्न धार्मिक आयोजन, त्योहार और मेले मनाए जाते हैं।

यह दोनों धर्म भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति, समृद्धि और विविधता के अभिन्न अंग हैं और इन्हें अपने धार्मिक मूल्य और संस्कृति के लिए विशेष महत्वपूर्ण माना गया है।

निष्कर्ष – sabse purana dharm kaun sa hai

इस आर्टिकल में sanatan dharm kitna purana hai के बारे में बताया है। इसके अलावा यह भी बताया है कि Duniya ka sabse purana dharm, sanatan dharm ki sthapna kab hui.

यहाँ पर हमने सनातन धर्म के देवी देवता, सनातन धर्म और हिंदू धर्म में अंतर, सनातन और हिंदू धर्म में समानताएं के बारे में भी बताया है।

इस लेख में हमने सनातन धर्म 18 पुराणों के बारे में, सनातन धर्म के मुख्य श्लोक, सनातन धर्म के नियम, सनातन धर्म के संस्थापक, सनातन धर्म का मतलब और सनातन धर्म के बारे में सामान्य जानकारी दी है।

आशा करते हैं हमारे द्वारा दी गई जानकारी को पढ़कर आपको पता लग गया होगा कि sanatan dharm kitna purana hai और आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो इसे सोशल मीडिया पर शेयर जरूर करें कथा सनातन धर्म से संबंधित कोई सुझाव देना है या कुछ पूछना है तो कमेंट करें।

FAQ

1. Sanatan dharm kitna purana hai?

दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म सनातन धर्म की शुरुआत 1,96,08,56,123 वर्ष पहले हुई थी। सनातन धर्म की यह शुरुआत तब से मानी जाती है जब पहली बार सूर्य की किरण गिरी थी। आज से पहले भी कई बार इस सृष्टि का निर्माण हो चुका है और सनातन धर्म इस धरती पर स्थापित हो चुका है।

2. Duniya ka sabse purana dharm कौन सा है?

दुनिया का सबसे पुराना धर्म, सनातन धर्म को माना जाता है। सनातन धर्म को वैदिक धर्म या हिंदू धर्म के नाम से भी जाना जाता है। इस धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है जो इस सृष्टि के निर्माता, संरक्षक और मोक्ष दायक है।

3. Sabse purana dharm kaun sa hai?

भारतवर्ष का सबसे पुराना धर्म हिंदू धर्म या सनातन धर्म को माना जाता है। इस धर्म की शुरुआत सूर्य की पहली किरण पृथ्वी पर गिरने से हुई थी। इस धर्म में 18 पुराण है।

4. Sanatan dharm ki sthapna kab hui थी?

सनातन धर्म की स्थापना पृथ्वी पर सूर्य की पहली किरण गिरने से हुई थी, तब से इस धर्म की शुरुआत मानी जाती है। सनातन धर्म की शुरुआत लगभग 1 अरब, 96 करोड़, 8 लाख, 56 हजार, 123 वर्ष पुरानी मानी जाती है।

5. सनातन धर्म का अर्थ क्या है?

सनातन धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है “सदा चलनेवाला धर्म” या “अनादिकाल से चलनेवाला धर्म”। “सनातन” शब्द संस्कृत भाषा में “सदा चलनेवाला” या “अनादिकाल से चलनेवाला” का अर्थ करता है, जिससे सनातन धर्म को अनन्त और अविकारी का प्रतीक बताया जाता है। यह धर्म किसी विशेष काल या समयबद्धता से प्रभावित नहीं होता है, बल्कि यह अनादिकाल से चली आ रही धार्मिक विचारधारा है।

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